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अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥ मोहिः संभ्रान्तः स्थित्वा शान्तिं न प्राप्नोत्। तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ अर्थ- हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे आपने ही https://shivchalisas.com

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